लेखक की कलम से

चलो बनाएं अस्पताल …

मन्दिर मस्जिद बनाने वाले, देख लो अपनी हाल।

एक कोरोना ने बदल दी, सबके जिंदगी की चाल।।

मन्दिर मस्जिद बंद पड़े हैं, न बजते ढोल करताल।

भागमभाग वहाँ मची है, जाकर देखो अस्पताल।।

 

अपनी पीड़ा कोई न सुनते, अल्लाह न भगवान।

मानवता की सेवा कर रहे, बनके डॉक्टर इंसान।।

नहीं लहराते ध्वज कहीं पे, न चढ़ाते कोई चादर।

लोग कफ़न को तरस रहे, जरा देखो तो जाकर।।

 

अर्ध्य देते दिखता नहीं, नहीं होते हैं पर्व उल्लास।

फूलों की जगह बह रही हैं, नदियों में नंगी लाश।।

सुनने को अब नहीं मिलता, संकीर्तन राम कथा।

कौन किसको क्या सुनाएं, सभी की एक व्यथा।।

 

होते न अब लंगर कहीं पे, बंटते न भोग, प्रसाद।

सबके जीवन में कडुवाहट, बढ़ गया अवसाद।।

जाति, धरम के नाम पर, अब न होते कहीं दंगा।

यह सोच सभी हैरान हैं, यम ने क्यों लिया पंगा।।

 

नहीं मांगते काया माया, न मांगे कोई जन-धन।

देना है तो दे दीजिए, यहाँ सबको आक्सीजन।।

कोरोना ने सीख दे दिया, नहीं व्यर्थ करो बवाल।

मन्दिर मस्जिद छोड़कर, चलो बनाएं अस्पताल।।

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)             

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