लेखक की कलम से
शहनाईयों से गूंजती कार्तिक पूर्णिमा का स्वागत …
बंद आंखों से गीत ब्याह के सुन रही थी
आंख खुली तो सपना नहीं था भ्रम टूट गया
गीत बता रहा था मुझको पास आकर हौले-हौले
नैहर से बिटिया का नाता अब तो छूट गया
छलछला उठीं आंखें मेरी भी ना जाने क्यों
बिटिया को मेरी गोद से कोई जैसे लूट गया
पाल-पोसकर उसके आगे सपने खूब सजाए थे
बिटिया के संग संग प्यार हमारा भी अटूट गया!
©लता प्रासर, पटना, बिहार