लेखक की कलम से
… अब तो ख्वाब रह गयी खाली
न वो खेत न वो हरियाली
न वो पीपल न वो डाली
वो बचपन वाली मस्ती
अब तो ख्वाब रह गयी खाली
न वो सावन न वो रिमझिम
न वो बगिया न वो माली
अब ना रही वो मीठी बातें
फीकी हुई चाय की प्याली
त्योहारों की रौनक खो गयी
रह गयी खुशियाँ जाली
दीपक भी मायूस हो गए
मद्धम हुई दीवाली
अब न हीर न वो राँझा
न वो लैला मजनूँ वाली
न वो मीरा न वो मोहन
अब न रही प्रीत मतवाली
रिश्तों में आ गयी दरारें
और मुंह पर हरदम गाली
अपने ही बन गए विभीषण
बाँट दी घर की थाली
न वो कश्ती न वो पानी
न वो चुनर जाली वाली
सावी ढूंढे फिर से बचपन
खो गयी दुनिया रंगो वाली
@सविता गर्ग “सावी” पंचकूला (हरियाणा)
तीन साँझा काव्य संकलन और एक काव्य संग्रह “मैं मीरा सी” प्रकाशित हुए हैं।