लेखक की कलम से
दिल में इश्के क़रार …
नज़्म
तेरे प्यार की बहार हो मेरा दिल जाँ निसार हो ।
ये नसीब उसके हक़ में है जिसे मुहब्बतों का ख़ुमार हो ।।
हर क़दम पे गुस्तखियाँ वो क़दम बोसी की नुमाइशें ।
वही करेगा गुफ़्तगू जिसके दिल में इश्के क़रार हो ।।
सदियों तक चला करे तेरे मेरे इश्क़ की क़वायते ।
ना कभी तेरा दिल थका करे ना मेरा दिल बदगुमान हो ।।
ना तेरे बस में क़रार था ना ही मेरे बस में था रोकना ।
इस बहार की कज़ा है ये बस प्यार हो बस प्यार हो ।।
जमी पे आसमॉ झुक गया दीप जुगनुओं के जल उठे ।
जहाँ तक नज़र मेरी उठे तेरा इश्क़ हर सूँ बेशुमार हो ।।
कभी भूले से जो हाले दिल सुनाए अपनी ज़ुबा से तू ।
तो अश्क़ मेरे बहा करे मेरे नग़मों से तुझे क़रार हो ।।
तेरी ज़ुस्तजु में बैठा रहूँ दुआ यही अब खुदा से है ।
जो टूटता है दिल मेरा तो क्या उन्हें सब्र ओ क़रार हो ।।
©सवि शर्मा, देहरादून