लेखक की कलम से
तू ही तू दिखती है …
मेरे आंखों में तू, मेरे ख़्वाबों में तू
हर तरफ तू ही तू दिखती है…
तेरी झुकी हुई नजरें
गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ
हर रोज मरने पे
मुझे मजबूर करते हैं …
इन्तज़ार है,
इन्तज़ार है बस उन लम्हों का
जब तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा
खिल उठेगा आंगन में मेरे।
©मनीषा कर बागची