लेखक की कलम से
कौन से पानी में तूने कौन सा रंग घोला है …
बेरंग है सारे रंगों की अभिलाषा
हमनें गढ़ी सुविधा की परिभाषा
जिसनें सोखा नही हरा
हमनें कहा उसे हरा रंग
जिसनें जज़्ब किया नही पीला
हमनें कहा उसे पीला रंग
ख्वाहिशें , पर फैलाती जहाँ
उसे कहा आसमानी रंग
हरे , नीले , भगवे रंगों की
हमने करी ख़ूब राजनीति
जबकि असल में नहीं है
यह उस व्यक्ति , वस्तु या धर्म का रंग
हमने रंग दिया उसको वैसा
जो नहीं था उसका ख़ुद का रंग
असल में होते हैं बस दो ही रंग
या तो सफ़ेद या फिर काला
एक में समाहित एक से परावर्तित सारे रंग
अब मत चलाना अपना कुटिल दिमाग
एक को कहना पाक , एक को नापाक
खेलना अब के ऐसी होली
रहना सफ़ेद या सोखना सब रंग
बस दिखे ना केवल एक ही रंग
©विशाखा मुलमुले, पुणे, महाराष्ट्र