लेखक की कलम से
मेरा लक्ष्य …
लड़ना भी मुझे ही हैं।
तूफान का सामना भी मुझे ही करना हैं।
मैं भूल नहीं पाता अपना लक्ष्य,
कुंदन पर बैठना भी मुझे हैं।
शिखर पर चढ़ना भी मुझे ही हैं।
मुझे ही अपना विश्वास भी अटल करना हैं।
परंतु मैं समझ नहीं पाता,
संघर्षों का सामना कैसे करना हैं ?
दिन – महीने – साल मुझे,
मेरे जाल में उलझा रहे हैं,
सपना आसमान में उड़ने का हैं,
परंतु पहेलियाँ मुझे फसा रही हैं।
मैं क्या ऐसा काम करूँ जिससे ?
एक दिया मेरे घर रौशनी दे जाए।
प्रातः सूर्य सुहाना हो जाए।
मेरे लक्ष्य मेरे करीब आ जाए।।
©राज श्रीवास्तव, नई दिल्ली