लेखक की कलम से

हुकम का यक्का …

 

(लघुकथा )

 

तीन भाइयों में उसे ही ताश खेलनी आती थी और उसने रिश्तों की बाज़ी लगाई। बेगम का वह लाड़ला था। बेगम बादशाह की प्रिय। जो बेगम को पसंद होगा वह बादशाह को पसंद करना ही होगा। यह क़ानून है।

उसने वज़ीर बन कर सारा राजपाट लूट लिया। बादशाह की सारी शक्तियाँ छीन ली। परंतु बादशाह को गद्दी से नहीं हटाया। दोनों भाई, रिश्तेदार, सारी प्रजा बादशाह की इज़्ज़त करते थे। उनके सामने कुछ नहीं बोलते थे।

“आजकल” वह बादशाह को हुकम के यक्के की तरह प्रयोग कर रहा है और बादशाह को इस बात का इल्म ही नहीं है।

 

 

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़                                                             

 

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