यादें….
कभी सफेद बादल सी
अनेकों आकृतियों के घेरे बनाकर
मन को लुभाती
कभी काले बादलों सी घिर आती
मन केआकाश में
यादें ….
कभी मन उद्विग्न हो द्रुत वेग सा भागे कहीं.…
थामकर उसकी गति
मन को सहलाती
यादें…
तन की पीड़ा को न जाने
मन की व्यथा को समझती
फिर भी बेहद तड़पाती
यादें …..
सौ सौ बार पकड़ने की नाहक कोशिश की
बड़ी सूक्ष्म ,बड़ी स्थूल
न जाने किस गली में भाग जाती
यादें …..
ये दिन -रात बिचरती मन के इस निर्जन वन में
यत्न किये बहुतेरे फिर भी
बाज न आती
यादें ……
अधखुली पलकों का जब पलकों से हो आलिंगन
स्मृतियों के भंवर में फंस रहा हो मन
नयनों के कोरों को भिगाती
यादें……
काश कभी लौटकर आ जाएं वो पल
जी लें फिर एक बार उन हसरतों को
दबी ख़्वाहिशों को जगाकर मन भटकाती
यादें…..
धड़कते दिल में दबी सदियों की ये आवाज है
जेहन में बसे कुछ हंसी अहसास है
टूटे दिल की परवाज है
यादें …..
©राजश्री यादव “राज” आगरा, उत्तरप्रदेश
शिक्षा- एमए, बीएड, राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं व लेख का प्रकाशन। अमृता प्रीतम पुरस्कार से सम्मानित।