लेखक की कलम से
क्षितिज….
जहां मिलती है अम्बर और धरती
वो क्षितिज कहलाता है
निराला सा है बंधन
भ्रम हो के भी सबको भाता है
दिखता है दूर मगर
पर मुकम्मल सा नजर आता है
न होके भी दिखाई दे
ऐसा बंधन सबको भाता है
स्वार्थ के जहान में
यथार्थ का है दर्शन
काश रिश्तो में भी कड़वाहट न दिखाई दे
दूर होके भी प्यार की ध्वनि सुनाई दे
क्षितिज जैसा हो सुन्दर बंधन
जहाँ मिलती अम्बर और धरती
वो क्षितिज कहलाता है
निराला सा है बंधन
भ्रम हो के भी सबको भाता है
शालिनी जैन, गाजियाबाद उत्तर प्रदेश
परिचय : स्नातक, फ़ैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, लेखन, काव्य स्पंदन पत्रिका ,माही सन्देश पत्रिका ,परिचय टाइम्स ,विजय दर्पण ,शिक्षा वाहिणी ,हम हिंदुस्तानी usa ,समाचार पत्र और मातृ भाषा हिंदी और कुछ पोर्टल पर प्रकाशित हुई रचनाएं।