लेखक की कलम से

ख़ुशनसीब आज भला कौन है गौहर के सिवा सब कुछ अल्लाह ने दे रखा है शौहर के सिवा…

©नीलिमा पांडेय, लखनऊ

बीते बरस कजरी के मौसम में शुरुआती गायी गई कजरियों की तलाश में गौहर जान से मुलाकात हो गई। गौहर जान का बचपन का नाम एंजेलीना योवार्ड था। उनकी पहचान कलकत्ता की एक भारतीय गायिका और नर्तकी की है। इतिहास में उनकी ख्याति 76 आरपीएम रिकॉर्ड पर संगीत रिकॉर्ड करने वाली भारत की प्रारंभिक कलाकार के रूप में मिलती है जिसे ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड पर ग्रामोफोन कंपनी द्वारा जारी किया गया।

हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक को लोकप्रिय बनाने वालों में भी गौहर जान की गिनती होती है। उनके गाये ठुमरी,दादरा,कजरी और तराना के रिकार्ड मौजूद हैं। उनकी गाई ठुमरी ‘ मोरा नाहक लाये गवन’ लोकप्रिय है।

जून 26,1873 ईसवी में जन्मी गौहर जान सन 1881-83 ईसवी के बीच शहर बनारस में रहीं। उनकी माँ मलिका जान कथक की नृत्यांगना थीं। सन 1883 ईसवी में मलिका जान ने कलकत्ता में रिहाइश का इरादा किया। वहाँ वह अवध के निर्वासित नवाब वाजिद अली शाह के दरबार से जुड़ गई। वाजिद अली शाह उन दिनों मटियाबुर्ज में रह रहे थे। कलकत्ता में ही गौहर जान की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा हुई। उन्होंने बृंदादीन महाराज से कथक सीखा और चरनदास जी से गायिकी का हुनर हासिल किया।

सन 1910 ईसवी में किंग जार्ज पंचम के ताजपोशी के जलसे में गौहर जान के दिल्ली दरबार शिरकत करने के उल्लेख मिलते हैं। जलसे में उन्होंने इलाहाबाद की जानकी बाई के साथ मिलकर ‘ये है ताजपोशी का जलसा मुबारक़ हो, मुबारक़ हो’ युगल गीत गाया।

इलाहाबाद से जुड़ा एक रोचक किस्सा है। गौहर जानकी बाई के साथ ठहरी थीं। रुखसती के वक़्त उन्होंने अपनी मेज़बान से कहा कि, “मेरा दिल ख़ान बहादुर सय्यद अकबर इलाहाबादी से मिलने को बहुत चाहता है।”

मेजबान जानकी-बाई ने कहा कि, “आज मैं वक़्त मुक़र्रर करलूंगी, कल चलेंगे।”

चुनांचे अगले दिन दोनों अकबर इलाहाबादी के यहाँ जा पहुँचीं। जानकी-बाई ने तआ’रुफ़ कराया और कहा, ‘ये कलकत्ता की निहायत मशहूर-ओ-मा’रूफ़ गायिका गौहर जान हैं। आपसे मिलने का बेहद इश्तियाक़ था, लिहाज़ा इनको आपसे मिलाने लायी हूँ ‘।

अकबर इलाहाबादी ने जवाब दिया, “ज़ह-ए-नसीब, वर्ना मैं न नबी हूँ न इमाम, न ग़ौस, न क़ुतुब और न कोई वली जो क़ाबिल-ए-ज़यारत ख़्याल किया जाऊं। पहले जज था अब रिटायर हो कर सिर्फ अकबर रह गया हूँ। हैरान हूँ कि आपकी ख़िदमत में क्या तोहफ़ा पेश करूँ। ख़ैर एक शे’र बतौर यादगार लिखे देता हूँ।”

ये कह कर मुंदरजा ज़ैल शे’र एक काग़ज़ पर लिखा और गौहर जान के हवाले किया।

“ख़ुशनसीब आज भला कौन है गौहर के सिवा
सब कुछ अल्लाह ने दे रखा है शौहर के सिवा”

गौहर ने भी तुर्की ब तुर्की फ़ौरन जवाब में एक शे’र कह डाला । शे’र कुछ यूँ था –

“यूँ तो गौहर को मयस्सर हैं हज़ारों शौहर
पसंद उसको नहीं कोई भी ‘अकबर ‘ के सिवा”

गौहर जान से जुड़ा इलाहाबाद का ये किस्सा खासा मशहूर है।

तस्वीर: गौहर जान/ स्रोत: आर्काइव्स

 

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