मीन और नारी …
मैं भी हूं मीन सी प्यासी, जल- जीवन मीन का, मेरा जीवन प्यार रे ।
सुन्दर मीन को सब कोई चाहे, ना हो रूप तो ना पूछे संसार रे ।
अज़ाब-ए-तन्हाई कभी सहती तो कभी रौनकें- महफ़िल बन जाती नारी ।
कभी करूं तकरार तो मानी जाती बेमानी, रहूं चुप तो है कद्रदानी ।
दी ग़र कभी सदातो नाकाम लौट आई, अहले-जहां को रहती ना ख़बर हमारी ।
बंट गए टुकड़े सारे कुछ ना बचा अब बाकी है, ज़िन्दगी भी अब अपनी
नहीं पराई सी लगने लगी है हमारी ।
कितनी दूर निकल आए हम अब रहा ना कोई अरमान है, वो सब जो
लाए थे साथ, खो गया साजो-सामान है ।
लौट जाऊं वापिस अब ये मुमकिन नहीं, ढुंढने को घर वापिस मेरे नक्श्पां भी तो नहीं ।
मछली जल की रानी, नारी घर की रानी, कभी बने सजावट का
टुकड़ा, कभी दबाई जाए रे, कभी ये कुचली जाए रे, हाए रे मीन
और नारी एक सा कर्म लिखाए रे । मैं भी हूं मीन सी प्यासी
जल बनता मीन का जीवन, मेरा जीवन प्यार रे …..
©प्रेम बजाज, यमुनानगर