लेखक की कलम से
उम्मीद …
फूटते हैं बादल जब भी
रोके आते हैं जमीं पर
स्त्री की गोद में
अपने आंसू पिलाने के लिये
और वह सुकून से भर लेती है
अपनी आगोश में
अपनी वाहों में
प्यार से यह सोच कर
कहीं गीला न हो जाये
बीमारियों से बचाने के लिये
रख लेती है अपने अन्दर
और उगा देती है एक नई फसल
लहराने के लिये
ये जानते हुये भी कि एक दिन
तू काट दी जायेगी
मगर फिर भी उगानी है
हर तरफ
हरी फसलें
जिन्दगी उगाने के लिये
©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी