लेखक की कलम से
छंद – चोका …
मैंने देखा है
बाँस की पोंगली में
स्वर गुँजाते
मैंने देखा है
अनगढ़ माटी को
मूर्ति बनाते
मैंने देखा है
पिघलाकर मोम
लोहा बनाते
मैंने देखा है
गहन अँधेरे में
दीप दिखाते
मैंने देखा है
बिना पँख गगन
सैर कराते
मैंने देखा है
जेठ की दुपहरी
साँझ मनाते
मैंने देखा है
बगुलों को जग में
मोती चुगाते
मैंने देखा है
वाणी की ताकत से
स्वर्ग सजाते
मैंने देखा है
हर असम्भव को
पूर्ण कराते
गुरु है तो सब है ।
वही सच्चा रब है।
©श्रीमती रानी साहू, मड़ई (खम्हारिया)