लेखक की कलम से

तारीफ करूं मैं उसकी….

 

उलझी लटों वाली लड़की

आफ़िन हूँ तुझपे

सदके जाऊँ उस खुदा के

शुक्रिया उस रब का कर लूँ

जिसने बनाया तुमको

ताज की धवल दीवारों से

चुनकर उजली किरणें

गोरा रंग भरा तेरे तन पे

ज़ुल्फ़ों की बदली है या

खुशबु का कोई डेरा

सँवार दूँ आ संदली तेरी

एक-एक उलझी लट को

नशीली आँखों का नशा

तौबा कोई क्यूँ ना बहके

पी लूँ गटगट एक ही घूंट में

कभी जो छलके सुराही

बादामी गालों से सरके

जरी सुनहरी हल्की

कायनात को उजली करती

रश्मियों सी बहती

अधखुली दो पंखुड़ियों से

लब लिपटे आपस में

खुलते ही साँसों की खुशबू

महक भरे तन-मन में

गरदन मरोड़ दार सुराही

कमर कटीली घाटी

अल्ते की लालिमा सी ये

पिंडलियों की पंक्ति

कुल मिलाकर तू है पूरी

जाम की भरी पियाली

चमकती चाँदी सी तेरी

आभा बड़ी निराली

©भावना जे. ठाकर

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