लेखक की कलम से
कड़वाहट…….
समाज में
देश में
जन में
विचारों में
विमर्श में
सोच में
शून्य का आकाश निर्मित करती है ।
मानव को जड़ बनाती है
यह जड़ता
समाज के लिए
देश के लिए
मानवता के लिए
बड़ी घातक होती है
क्योंकि जड़ता मूढ़ता की अनुगामी है
विचारों का चैतन्य होना जरूरी है
देश, समाज की सशक्तता हेतु
विचारों का सामंजस्य भी
फिर सामंजस्य गायब क्यों?
यह द्वन्द, कड़वाहट
हमें कहाँ ले जाएगी?
विचारों की जड़ता से भला किसी का नहीं
जो जड़ है वह मृत है
संसार की सार्थकता आनंद में है
सामंजस्य में है
©डॉ साकेत सहाय, नई दिल्ली