लेखक की कलम से

जल …

 

जड़-चेतन संसार का, पालक प्राणाधार ।

पंचतत्व कह पूजते, सज्जन बारंबार।।1।।

 

गंगाजल दूषित किया, पानी फिजुल बहाय ।

अंतः बाहर तृप्ति का, साधन दिया गँवाय ।।2।।

 

जल संकट से जूझते, समझे क्यों नहिं मोल ।

लगा ज्ञान विज्ञान है, चिंतित है भूगोल।।3।।

 

जल जीवन सब जानते, मान जाय यदि लोग।

धन सम सन्चय कीजिए, रुक जाय दुरुपयोग ।।4।।

 

प्यासन पानी चाहिए, जल सींचन हित होय ।

नाम- काम में फर्क है, अज्ञानी बस रोय ।।5।।

 

©श्रीमती रानी साहू, मड़ई (खम्हारिया)            

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