लेखक की कलम से

इश्क समन्दर …

 

 

ए खुदाया इतना संगदिल सनम ना बनाना किसी को

जितने संगदिल बन गए हम उनसे दूर होते – होते  ।।

 

इश्क  का  समन्दर  हमने  देखा  उनके  नैनों  में

अपने आखिरी समय में दुनियां से विदा होते – होते ।

 

कोई रही होगी मजबूरी उनकी भी जिसे ना समझे हम

वरना इतने संगदिल वो  ना थे कि वो  हमारे  ना होते ।

 

वो  चाहते रहे दिल ही दिल में हमें , और हमने चाहा

कि वो गाएं हमें शब्दों की माला में पिरोते – पिरोते ।

 

 

थक गए उन्हें हम ढूंढ -ढूंढ कर सारे जहां में जो चीर

कर देखा दिल तो पाया उन्हें वहीं इन्तज़ार करते-करते ।

 

मैं कैसे करता ब्यां अपने इश्क की कहानी उनसे

अच्छा होता वो खुद ही समझते , और महसूस करते ।

 

जिसे पाने के लिए खाई ठोकरें  हमने , आज वही आए

खुद  दर  पे हमारे  शोहरत अपनी नीलाम करते-करते।

 

 

    ©प्रेम बजाज, यमुनानगर     

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