लेखक की कलम से

समर्पण 

कान्हा तेरा दीदार चाहूँ  प्रतिक्षणतुझे पुकारू आठो राम,
जो कह दिया वह शब्द थे ।जो नहीं कह सके वो अनुभूति थी l
और,जो कहना है मगर कह नहीं सकते,
वो मर्यादा  हैपत्तों सी होती है कई
रिश्तों की उम्र आज हरे,कल सूखे
डोर श्याम मुरारी से जोड हम, रिश्ता  जोड़े बनवारी से;
रिश्ते निभाना सीखें ।।रिश्तों को निभाने के लिए,
कभी अंधा,कभी गूँगा,और कभी बहरा होना ही पड़ता है ।
श्याम तेरी प्रीत  निभाने मे तानो को सहना
पडता है।बरसात गिरी और कानों में इतना कह गई !
गर्मी हमेशा किसी की भी नहीं रहती।नर्म लहजे में ही अच्छी लगती है ।
जिंदगी , कान्हा तेरे दर्शन  की प्यास मे मौत का खौफ तडपाता है।तेरे मिलने से पहले जन्म कही व्यर्थ  न हो
जाए।इस बात से मन घबराता है।
दस्तक का मकसद,दरवाजा खुलवाना होता है,  तोड़ना नहीं l
घमंड किसी का भी नहीं रहा,टूटने से पहले गुल्लक को भी लगता है कि  सारे पैसे उसी के हैं ।माटी की देह का गुमान  करे बंदेये स्वांस मिले है जाने हुए।श्याम की भक्ति  कर निरन्तर  दिल कभी किसी न जिस बात पर , कोई मुस्कुरा दे;
बात बस वही खूबसूरत है ।।थमती नहीं, जिंदगी कभी,
किसी के बिना ।मगर,यह गुजरती भी नहीं, कान्हा
के बिना ।जैसे जल बिन मीन राधे बिन बंसी न बजे
वैसे कान्हा बिन तरसे मेरे नैनप्रतिदिन  तुझे देखने  खोजूं भव सागरमे, बाँट जाऊँ  साँवरे समा जा मुझमे
बंद करलू नैन।?
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा

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