लेखक की कलम से
आज की पुकार …
है यही आज की पुकार
चलो धोएं हाथ बार बार
नहीं करना है किसी का एतबार
चाहे चप्पल घिस जाए मेरे यार
फिर भी चल- चल कर लाना है सामान मेरे यार
घर पर रसोई या दफ्तर का हो काम
हंसते हुए दिन बिताना ही बच गया है काम
अंदर का तूफ़ान, बाहर शून्य में मिल जाता है
गर छींक भी आ जाए किसी को दूजा दूर भाग जाता है
नतमस्तक हैं भाई हम तो परिस्थिति के आगे
प्यार तो क्या पिटाई करने से भी कीटाणु भागे चले आते हैं
न उम्र देखते हैं और न ही रुतबा
हो जाता है यूं ही कीटाणुओं का हमला
फिर भी हम मानव हैं
और हर हालत में खुश हैं।।
©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा