लेखक की कलम से
उनकी चाहत …
रात भर फिर कोई याद आता रहा
मुझको तन्हाई का गम सताता रहा।
आंख बोझल रही सो ना पाये हम
खुआब में आकर कोई जगाता रहा।
उनकी यादें बसी दिल में है आज भी
उनकी चाहत का दर्द याद आता रहा।
कर दिया अपने आप को सुपुर्द गम के
उनके तस्ब्बुर को हाल सुनाता रहा।
कैसे आवाद रहे प्यार का “झरना”
जब इस दिल में अन्धेरा ही छाता रहा।
©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड