लेखक की कलम से

आज कैसा ये धुंध उठ रहा ….

 

आज कैसा ये धुंध उठ रहा,

दर्द में सिमटा है जहां,

अदृश्य दाफनव भटक रहा यहां वहां,

कब किसकी बारी है नहीं पता,

शामों शहर विरान हो रहा,

दोस्तों से मिलना नागवार हुआ,

नहीं बुझ रही शमशानों की चीता,

चंद ऑक्सीजन के लिए

दम तोड़ रहा जहां,

अस्पतालों में जगह नहीं बचा,

हर रिश्तेदार इसकी चपेट में आ रहा,

यह चीनी वायरस न जाने

कब छोड़ेगी हमारा पीछा,

है विलख रहा अपनों के लिए सब यहां,

मिलेगी कब मुक्ति हिसाब इसका न रहा,

जाने कब थमेगी यह आंधी,

जाने कब होगा आवाद मेरा जहां,

वह सुकून जाने कब आएगा,

जब गली चोबारों में धूम मचीगा,

फिर से दोस्तों का मिलन होगा,

फिर वही पहले वाला चमन होगा,

चहकेंगे बच्चे स्कूल, मैदानों में यहां,

सजेंगे बाजार गलियों के ,

कोई तो जादू कर दे ईश्वर ,

हो जाए सारे कष्टों का उद्धार……..।।

 

©पूनम सिंह, नोएडा, उत्तरप्रदेश                                   

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