लेखक की कलम से
जाने को है एक और दिसंबर …
जाने को है एक और दिसंबर,
देकर झोली में कुछ मीठे अनुभव।
कुछ अपने जो पीछे छूट गए,
कुछ बेगाने जो मन मीत बने।
कुछ रातें कटी अंधेरी-सी,
कुछ दिन आये उजास लिए।
होंठों पे हंसी खिल उठी कभी,
दिल गम से कभी नम हो गया।
कुछ पीड़ा खीझ द्वेष आंसू,
कुछ हर्षउल्लास का संगम हुआ।
कुछ सिखा गई ज़िन्दगी मुझको,
जीवन के नए से फ़लसफ़े।
कुछ भूला तो कुछ याद किया,
देखा जो पीछे मुड़-मुड़ के।
लेने को विदा तैयार खड़ा,
आ तुझ को गले लगा लूँ मैं,
ओ दिसम्बर तुझ से जुदा होने पर,
कुछ मीठे ख़्वाब सजा लूँ मैं।
तभी… दरवाजे पर दस्तक देता,
जनवरी झांकता खिड़की से।
आने को आतुर जीवन में,
कुछ नए नए जज़्बात लिए।
आशाओं के सवेरे में,
उम्मीदों का जगमग सूरज लिए।
कहता है हाथ पकड़ मेरा,
चल मेरे संग नई डगर पर।
सुंदर सपनों को सच कर दें,
आ ‘मैं’ और ‘तू’ संग मिलजुल कर।
©मीनाक्षी मोहन ‘मीता’, पंचकुला, हरियाणा