लेखक की कलम से

प्रकृति से प्रेम ….

 

दिन भर के आपा धापी से,

जब थक जाती हूँ,

तब बहुत सुकून देता है,

प्रकृति का वह रहस्यमयी कलाकारी स्पर्श,

जो आसमानों में ईश्वर ने अपनी कूँची में,

अनगिनत रंगो को भरकर बिखेरी हैं।

शाम को गोधूलि बेला में छत पर,

बरबस निगाहें एक टक निहारती हैं।

नीला आकाश और पंछियों का कतार,

जो अपने घर की ओर जाते हैं।

भगवान सूर्य अपनी किरणें को समेटते हुए,

अस्ताचल की ओर चल पड़ते हैं।

उस लालिमा को देख कर,

नतमस्तक हो जाती हूँ।

जल में अठखेलियाँ करती,

सूर्य की किरणें सात रंग बिखेरती हैं,

उस पर पुष्प दल कमल,

और उसके आस पास के दृश्य,

बहुत मनोहारी होते हैं,

ऐसा लगता है मानो तमाम रंगो को,

अपने दामन में सहेज कर रखती हैं,

और हमें समय-समय पर,

सौगात का रूप देती रहती है।

प्रकृति निर्मित पेड़-पौधे,

जो निःशुल्क रंग-बिरंगे फूल-फल प्रदान करती हैं,

ऐसा लगता हैं जैसे,

मन की सारी बाते जानती हैं।

संसार को बनाने वाले,

उस चित्रकार की कलाकारी पर हैरान हूँ।

चित में अपार शांति और आनंद की अनुभूति होती हैं।

इस कायनात के कण-कण में,

कुदरत का करिश्मा दिखता हैं।

 

©ममता गुप्ता, टंडवा, झारखंड

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