लेखक की कलम से
बेच खाएंगे …
वाहियात पचड़ों की आड़ में
धांधले बाजी संसद में
अरे ! छ: माह तक
टिक नहीं पाते
ये क्या सरकार चलाएंगे।
पूरा सागर पी गए, अगस्त मुनि
एक अंजु्ली में
ये कई अगस्तों तक,
जनता के आंसू
न पोछ पाएंगे।
मत पालो ! राम राज्य की
आस की पंछी !
इनका बस चलेगा तो
राम का मुकुट तक
बेच खाएंगे।
ठहरों रूको आसमान में,
एक किरण चमकी है।
शायद गांधी-पटेल सरीखा,
कोई लौह पुरुष आए,
और आतंक की सलीब पर,
टंगी जनता को
राहत दिलाए।।
© मीरा हिंगोराणी, नई दिल्ली