लेखक की कलम से

वह घर है …

 

घर के आईने में

देख सको अगर

नज़र मिलाकर

अपना अक्स

तो वह घर है

 

घर की दीवारों पर

पड़ती हो अगर

धूप स्नेह की

गुनगुनी -गर्म

तो वह घर है

 

घर के फ़र्श पर

बिछी हो अगर

प्यार की चादर

मख़मली रेशम-सी

तो वह घर है

 

घर के दस्तरखान पर

खा सको अगर

मिल बाँट कर

दो निवाले संतोष के

तो वह घर है

 

घर के बाशिंदों को

बांधे रखे अगर

आपस में कोई

अदृश्य डोर

तो वह घर है

 

घर के दरवाज़े पर

रख सको अगर

साँझ ढले एक दिया

विश्वास का

तो वह घर है

 

ऐसे घर में

उगा जो सूरज

एक दिन

दुनिया को

रोशन करेगा

 

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़                                                             

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