लेखक की कलम से
हे स्त्री…..
हे स्त्री…!
तुम रूप हो तुम रंग हो
तुम जीवन का हर अंग हो!
भावनाओं की बंधेज हो
तुम तो सहन की सेज हो!
कभी नर्म हो कभी सख़्त हो
तुम इक मधुर दरख़्त हो !
तुम दुर्गा हो तुम काली हो
तुम महा शक्तिशाली हो!
कभी सुबह हो कभी शाम हो
ज़िंदगी का पहला इमाम हो !
कभी सखी हो कभी संगिनी
तुम हो मेरी दुःख भंगिनी!
तुम काम हो तुम क्रोध हो
तुम हर ख़ुशी का बोध हो!
तुम धारणा हर मन हो
तुम सर्व गुण सम्पन्न हो !
तुम रचना का अवतार हो
तुम इश्क़ हो तुम प्यार हो!
तुम देवी हो देव भक्त हो
तुम हर घड़ी सशक्त हो !
तुम हर बाधा में साध्य हो
हे स्त्री! तुम आराध्य हो!
हे स्त्री! तुम आराध्य हो!
©अंशु पाल, नई दिल्ली