लेखक की कलम से

तुम्हें अर्पित…

जिन बूदों में मुझे महसूस करना,
वो बरसात तुम्हें अर्पित।
जिनमें शब्द न शामिल होते,
वो सब बातें तुम्हें अर्पित।
नैनों में तुम गर बरस जाओ,
वो पलकों की छांव तुम्हें अर्पित।
मन में जहाँ तुम बसते हो,
वो अनुपात तुम्हें अर्पित।
नब्ज जो चलती है तुम्हारे नाम से,
वो अंशिता का अंश तुम्हें
अर्पित।
©अंशिता दुबे, लंदन

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