लेखक की कलम से
सावन की बिदाई …
1.
जात-पात और धर्म कर्म के कुनबे खूब बनाये
तन की खुशबू भूलकर फूल खूब सजाए
जीत चाहते सबके ऊपर खुद को रहे भुलाए
क्यों नहीं खोकर ईर्ष्या द्वेष प्रेम तुने जगाए!
2.
वात व्याकुल रहा विचरता जीवन सुगंध ले भार
तेरी मेरी मेरी तेरी इसकी उसकी का व्यापार
मनुज महक ले चहक उठा मीत गीत का सार
विस्मित चंचल है कितना देखो दृग द्वार
पवन प्यासा भटक रहा पाने को प्यार
©लता प्रासर, पटना, बिहार