लेखक की कलम से

शारदीय नमस्कार

कुछ दुःख कुछ सुख

कुछ दिन कुछ रात

कुछ कमी कुछ ज्यादा

कुछ कुछ करते करते

जिंदगी निकल जाती

ठहर जाती है

हमारी यादें

हमारे कर्म

हमारी कसौटी

कुछ सांसें जो बचीं है

खूब सोच-समझ कर

इनकी गिनती पूरी करनी है

यही फलसफा है शायद ज़िन्दगी की।

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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