लेखक की कलम से

चढते सूरज सा प्यार हमारा …

देखो उस ढलते सूरज को, कहीं हमारा – तुम्हारा प्यार इस ढलते

सूरज के जैसा ढल तो नहीं रहा  ।

याद करो वो पल कभी ढलती शामें बिताया करते थे हम संग ,

खो जाते थे एक – दूजे में , चढ़ता था जब एक -दूजे का रंग ।

 

क्या वो हसीन शामें तुम्हें याद है मेरे सनम , कहीं भूल ना जाना तुम्हें मेरी कसम ‌।

डूब जाते थे हम एक – दूजे के नैनार्णव में , कुछ तो कहो दो तुम मेरे कर्ण में ,

कुछ तो बोलो  हलचल मची है मेरे अन्त:करण में ।

 

नहीं  मैं नहीं भूला चढ़ते सूरज के साथ हमारे परवान होते प्यार को ,

मैं ढलता सूरज नहीं देख रहा हूं चढ़ते सूरज के अभियान को ।

देखो अभी भी ताज़ा है तुम्हारी मीठी – मीठी तकरार वो ,

चढ़ते सूरज सा था और सदा रहेगा हमारा प्यार वो ।

 

ना होंगे जुदा मरकर भी आओ फिर से  करले पहले सा इकरार वो ,

वो देखो परछाई हमारी , अभी भी जवां है हमारा पहले सा प्यार वो ।

 

      ©प्रेम बजाज, यमुनानगर      

 

Back to top button