लेखक की कलम से

एकता का प्रेम …

 

स्त्री, स्त्री को सौप

अपने सपने से  उसमें देख ले

मन की पीड़ा जो है तेरी

उसकी पीड़ा खुद रोप ले

काँटों में गुलाब खिलते है

एक साथ

खुशबू एक ही महकती है

हर बार

स्त्री स्त्री को महकादे दे

प्रेम जीवन

आलौकिक संसार बना दे

तब होगा स्त्री

तेरा एक नया अवतार‌

देख स्त्री कैसे बनता है

तेरा नया एकता का संसार

 

©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी

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