लेखक की कलम से
कृष्णा …
प्रेम सुधा रस बरसाने वाले,
पुत्र प्रेम के भाव हो कृष्णा |
गोप ग्वाले धेनु चराने सम मूरत,
कालिंदी तीरे बंसी बजाते कृष्ण |
दुखहर्ता पालनकर्ता भूख मिटाते,
दरिद्रता हर सम्मान दिलाते कृष्ण |
सखाओ में सखा तुम सहचर कहाते,
न भेद कर गले लगाये तुम हो कृष्ण |
विषधारी मर्दन कर सम प्रेम भाव के,
जीने का अधिकार दिलाते तुम कृष्ण |
प्रेम की प्रति मूरत राधे संग रास रचाते,
गिरधर गोपाल मीरा दीवानी तुम कृष्ण |
लाज बचाने चिर बढ़ाते द्रोपती के तुम,
भाई बहन के रिश्ते निभाते तुम कृष्ण |
सारथियों के सारथी बन आगे बढाते तुम,
मुसीबत से मुकाबला करना सीखते कृष्ण |
योगेश्वर हो तुम ज्ञानेस्वर सभी विधा समाये,
मूक वाचाल लंगड़ा चलना सिखाए कृष्ण |
समरसता की राह बनाते हो गोवर्धन धारी,
मानवता कल्याणकारी समभाव हो कृष्ण |
©योगेश ध्रुव, धमतरी, छत्तीसगढ़