लेखक की कलम से

नारी …

हिदायतों संग पूजते हो

तय कर रक्खें सीमाओं के क्षितिज

नारी की विवेक के मापदंड भी

पर निमिष में भी सोचने की

क्षमता रखती है नारी

तोड़ देती है तुम्हारे

बनाए उलझाने को वलय

बढ़ने लगे हैं अब उसके

प्रयासों के विस्तार

नारी के स्वाँस प्रस्वाँस पर

अधिकार सिर्फ़ प्रेम की रजत किरणोंसे

प्राप्य है

उस अमृत पीयूष को ह्रदय भावों में सुजलता

की प्रवाह मई निर्झरिणी से

आधिपत्य किया जा सकता है तुम्हारी

बंचना में तो कदापि नहीं

वो देती हूँ अहर्निश अपना सर्वस्व तब तक

जब तक तुम अपने उद्दात भावो को

निलय करते हो

तुम्हारे छदम वेश को छुपा नहीं सकते

पहचाने लगी हूँ

अपने त्रिनेत्रो से

मै नारी शक्ति

आधारिणी हूँ

 

©सवि शर्मा, देहरादून                                                        

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