लेखक की कलम से
यशोधरा …
क्यूँ छोड़ गए उस रात
अकेली मुझ विरहन को
कैसे जीवन बीतेगा
अब साँझ सबेरे
वेदनाओं को गुनती
बुनती क्या में सोचूँ
किस पथ के अनुगामी
हो गए ?
आस तोड़ता पलछिन
तेरा बैरागी पन
आए क्यूँ ये निशा नाथ
अम्बर के आँचल,
क्यूँ भानु चमके इस
मोहनी धरा पर ,
जब साथ नहीं मेरे
मेरा ह्रदय अपना ,
जो कह देते एक बार प्रिय
छोड़ देती रास्ता
तुम्हारा हस कर
कर देती आज़ाद ,
पर कह जो नहीं पाए तुम
और सुन नहीं पाई मैं
खड़ी हूँ गोद में लिए अंश तुम्हारा
कब आओगे ?
एक बार तो
इस तप्त ह्रदय को प्रेम
राग सुना जाओ !
©सवि शर्मा, देहरादून