लेखक की कलम से

क्या नागरिकता कानून ऐतिहासिक भूल-सुधार नहीं ?

धर्म के आधार पर हुए देश बंटवारे को स्वीकार करके कांग्रेस ने जो ऐतिहासिक भूल की थी उसका खामियाजा पाकिस्तान-अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे या रह गए लाखों-करोड़ों हिंदू-सिख-बौद्ध-जैन-पारसियों और ईसाइयों ने भुगता है। तीनों देशों में धर्म के नाम पर इन्हें जिस तरह से प्रताड़ित किया गया, उसे सुनने मात्र से रूह कांप जाती है। इसी प्रताड़ना का परिणाम है कि कभी पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की सरकार में सांसद रहे डायाराम सभी सुख सुविधाएं छोड़कर आजकल हरियाणा के फतेहाबाद में मूंगफली बेच रहे हैं और बहुत खुश हैं।

इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के विधायक रहे बलदेव पंजाब में शरण लिए हुए हैं यह तो उदाहरण मात्र है लाखों की संख्या में ऐसे लोग हैं जिनका धर्म के नाम पर शोषण किया गया, उनकी बेटियों का अपहरण करके मुसलमानों के साथ में शादी कर दी गई। हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज शोएब अख्तर ने खुलासा किया कि टीम में हिंदू खिलाड़ी दानिश कनेरिया के साथ भेदभाव होता था। टीम के कई सदस्य उसके साथ खाना तक नहीं खाते थे, जब राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ी के हालात ऐसे हैं तो मुस्लिम राष्ट्रों बांग्लादेश-अफगानिस्तान और पास में हिंदू-सिखों व जैनियों-पारसियों की स्त्रियों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इन तीनों को शरण देने के लिए नागरिकता कानून बना दिया है तो कुछ राजनीतिक दल भ्रम फैलाकर देश को आग में झोंक देने पर आमादा हैं। लोगों में देश निकालने का डर बैठाया जा रहा है जबकि गृहमंत्री अमित शाह ने सांसद में स्पष्ट किया कि यह नागरिकता लेने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला कानून है।

इस कानून में किसी को भी देश से बाहर भेजने का कोई प्रावधान है ही नहीं लेकिन कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल देश के मुसलमानों में भय पैदा करने से बाज नहीं आ रहे हैं। असल में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध वही राजनीतिक दल कर रहे हैं जो अरसे से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वर्ग विशेष के मतों की राजनीति करते आए हैं। उनके विरोध का मूल आधार मात्र राजनीतिक लाभ ही है। इन सभी ने एक स्वर में संसद और उनके बाहर मुसलमानों को नागरिकता देने के अधिकार से वंचित रखने का आरोप लगाया जबकि इस विधेयक के मूल से ही स्पष्ट है कि उसका उद्देश्य पाकिस्तान-अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के आधार पर प्रताड़ित हिंदू- सिख-ईसाई को भारत में बसने में मदद प्रदान करना है या पूरी तरह स्पष्ट है कि नागरिकता संशोधन विधेयक देश में मुसलमानों की वर्तमान स्थिति में किसी तरह का परिवर्तन नहीं करता उनकी नागरिकता को या कानून किसी तरह से चोट नहीं पहुंचेगा। इसके बावजूद भ्रम पैदा करके देश का समभाव-सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

विपक्ष की इन्हीं नापाक कोशिशों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि अगर स्वतंत्रता के समय धर्म के आधार पर देश विभाजन को कांग्रेस स्वीकार नहीं करती तो आज यह नौबत ही नहीं आती। यह तो भूल सुधार है। वैसे भी ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है इससे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मांग पर 13000 सिख और हिंदू को नागरिकता दी गई थी। कांग्रेस के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी सदन में पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आए हिंदू-सिख-बौद्ध-जैन-पारसियों को नागरिकता देने का समर्थन कर चुके हैं। अब जब सरकार ने नागरिकता देने का निर्णय लिया है तो कांग्रेस समेत उसके सहयोगी आसमान सिर पर उठाए हुए हैं। इससे साफ है कि कांग्रेस को अभी तक अपनी गलतियों का अहसास तक नहीं है।

©डॉ. अन्नपूर्णा तिवारी, बिलासपुर, छग

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