लेखक की कलम से
क़वायद हो रही है ……..।
जाल नदियों में बिछाने की क़वायद हो रही है
मछलियों को फिर फँसाने की क़वायद हो रही है
जिस तरह भी हो बचा लो घौसले अपने परिंदो
बिजलियाँ इन पर गिराने की क़वायद हो रही है
आज तक आये न बेहतर दिन घरों तक जो हमारे
फिर उन्हीं को ही भुनाने की क़वायद हो रही है
बहुत करते थे उन्हें बेचैन तन्हाई में अक्सर
जिन ख़तों को अब जलाने की क़वायद हो रही है
वो जो बरसों से चली आई है, रिश्तों में हमारे
परम्परा जड़ से मिटाने की क़वायद हो रही है
पत्थरों के इस शहर में, किस लिये फिर दोस्तों
काँच के ये घर बनाने की, क़वायद हो रही है
यों न बहको, यों न भड़को, मुल्क के ऐ’ नौजवानों
ये तुम्हें ख़ुद से लड़ाने की, क़वायद हो रही है
©कृष्ण बक्षी