लेखक की कलम से
प्रेमगीत…
सृष्टि के मनोरम दृश्यों में से
एक दृश्य चुनती हूँ,
आओ तुम्हारे लिए मैं
एक प्रेमगीत लिखती हूँ।
तोड़ती हूँ चट्टानों जैसे पत्थर
बनाती हूँ सूखी मिट्टी सा कोमल,
नये एहसासों को नये आकर देती हूँ,
आओ तुम्हारे लिए मैं
एक प्रेमगीत लिखती हूँ।
गीली चादर में फुलवरियाँ भर
सुगंधित वातावरण को तैयार कर,
चुटकी में तुम्हारी खुशियाँ बटोरती हूँ,
आओ तुम्हारे लिए मैं
एक प्रेमगीत लिखती हूँ।
हृदय के करती हूँ दो टुकड़ें
एक तुम्हें दें, दूजा स्वयं रखती हूँ,
आओ तुम्हारे लिए मैं
एक प्रेमगीत लिखती हूँ।
©वर्षा श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश