लेखक की कलम से
एको अहं — मैं हूं सब में
जब सुना –
अधखिली कली ,
कोख में मार दी गयी ,
उस बेकफन लाश को
पहचाना नहीं तुम ने ?
जब सुना
एक औरत घसीटी गयी
गाड़ी में – जिस्म उसका
नोच लिया कई दरिंदों ने
उस घायल ,अधमरी
औरत को पहचाना
नहीं तुमने ??
जब सुना
इक तरफ़ा प्यार का
बेटी ने किया इनकार
झुलसा था तब
जिसका चेहरा , तेजाब से
उस कुरूप लड़की को
पहचाना नहीं तुमने ???
जब सुना
डायन कह कर
पूरे गाँव में , घुमाया
निवस्त्र ,लज्जाहीन कर
उस नग्न ‘ देवी ‘ को
पहचाना नहीं तुमने ??
लेकिन मैं जान गयी थी
सब के मना करने के बाद भी,
पहचान गयी थी —
वो मैं ही तो थी
हर स्त्री में समायी
मेरे ही भीतर की औरत
हाँ – वो मैं ही थी