लेखक की कलम से

अब तो रोको हे परमात्मा …

अब तो रोको हे ! परमात्मा

इस भीषण नरसंहार को।

किस जुर्म की सजा सुनाई,

आज तूने इस संसार को।।

धरती कांपी, अम्बर कांपे,

और कांप उठा संसार है ।

ये कैसी प्रतिशोध विधाता,

यह कैसा प्रतिकार है ???

 

?मानव जाति पर हे!ईश्वर,

यह कैसा संकट आया है ?

कोरोना के रूप में तूने,

कैसी प्रलय मचाया है?

दशों दिशाओं से आ रही,

ये कैसी चित्कार है—

 

?लोग हैं दुबके अपने घरों पर,

दर्द छलक उठा अधरों पर।

मानों पंछी के पर है कतरे,

छद्मवेशी अनजान है खतरे।

धरती -अम्बर,यत्र-तत्र,

मचा हुआ हाहाकार है–

 

?सहमें हुए हर लोग है लगते,

मौन हो आँखों से कुछ कहते।

पर सुनने  वाला कोई नहीं है,

हर शख्स का दुःख यही है।।

बिगड़ गया है जनतंत्र और,

बिगड़ा आहार-विहार है—-

 

?लाशों के यहाँ ढेर पड़े हैं,

मौत के मुँह में दुनियाँ खड़े हैं।

चिताओं पर चिता रच रहा,

रोने वाला न कोई बच रहा।

मौन हो सब कुछ देख रहा तू,

और बिलख रहा संसार है–

 

?बच्चों की चंचलता छीनी,

अश्रुपूरित आँखें है भीनी।

थम गया क्यूँ जीवन धारा,

हर कोई लगता है बेसहारा।।

तेरी सृष्टि का श्रेष्ठ प्राणी,

क्यूँ बेबस और लाचार है—

 

?पूजा की कहीं घंटी न बजती,

मस्जिद में नमाज़ न सजती।

गुरद्वारे पे अरदास न दिखती,

कहीं फूल न, चादर बिकती।।

आज तेरे अस्तित्व पर देखो,

लाखों प्रश्नों की बौछार है—-

 

?जो न रुकेगा, यह आतंक तो,

हाहाकार भयंकर होगा।

भूखे प्यासे लोग मरेंगे,

कोई नहीं अभ्यंकर होगा।।

बस तेरे दयादृष्टि की,

हम सब को दरकार है—

 

?बिन मानव के हे!विधाता,

तू जग में कैसे राज करेगा ?

बिन भक्तों के मेरे भगवान,

आखिर तू भी भूखा ही रहेगा।।

बिन मानव के कैसी भक्तिऔर,

 कैसा दिखेगा यह संसार है—

 

?गलती हमारी माफ कर दो,

कोरोना को जड़ से साफ कर दो ।

जीवनदान अब दे दो स्वामी,

हम हैं मूरख, तुम अन्तर्यामी।

राम, रहीम, ईसा, बुद्ध का,

बस तू ही तो अवतार है——

©श्रवण कुमार साहू, “प्रखर”, राजिम, गरियाबंद (छग)

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