मेरी बेटी…
बेटी मेरे जीवन की सरस संगीत
सप्त सुरों सी हरदम बजती
क्या रात और दिन!
हर मुश्किल पलों में,बदरंगी क्षणों में,
सतरंगी इंद्रधनुष सा सजती,
हर विपदा को पल में हरती!
स्वर्णिम किरणों सी छा जाती
अन्तर्मन तक,अंतस को शीतलकर,
तम तक हर लेती,
हम दोनों बैठ बुनते जीवन की बहुरंगीय चादर,आत्मविश्वास से
काढ़ती विचित्र बेल-बूटे उसपर,
मैं भी हर्षित हो जाती हूँ,
देख कल्पना के विविध रंगीय!
अब तो वो है सखि मेरी,
सुनती सारी पीर अकेली,
हल पर हल वो करती रहती,
कभी गुरु सी भी दिख जाती!
वो है मेरी जीवन रेखा,
वर्षा की बूंदों सा देखा,
पायल सी नित्य बजती रहती,
मेरे मुख की अनुपम मस्ती!
ईश्वर से ये माँग रही हूँ,
सदा खुश रहे,चाह रही हूँ,
हर स्वप्न हो उसका सच्चा,
शांति,वैभव सह कदम बढ़ाए सर्वदा!
यात्रा कंटकरहित,
न बाधा,न विघ्न हो,
कलुषित तम से दूर हो,
सदा उन्नतिशील उन्मुक्त हो!
स्वेच्छा से चालित हो,
पर संस्कार की मालिक,
काम सर्वदा ऐसा करे,
जग की नव परिपाटी हो!
-अल्पना सिंह(माँ), बिटिया को समर्पित