लेखक की कलम से

खुशी हमसे……..

यूँ ना बैठ ऐ मुसाफिर थक-हार कर

वक्त बदलेगा तो जिंदगी भी संवर जायेगी

खुशी हमसे बचकर आखिर किधर जायेगी

   आज आँसू है किस्मत में तो निराश ना हो तू

   इन्हीं लवों पर कल मुस्कान बिखर जायेगी

   खुशी हमसे……..

    पतझड़ भी गुजर जायेगा देखना एक दिन

    बसंत-बहार फिर यहां आकर मुस्कूरायेगी

खुशी हमसे………

    कौन जानें कब सूखे ठूंठ पर आ जाये नई कोपलें

    फिर मरूस्थल में नई-नई फसलें नजर आयेंगी

खुशी हमसे ……..

      इन सूखे पेड़ों के सपने ये नन्हें पौधे जियेंगे

     इनकी आँखों में फिर वो तस्वीर निखर जायेगी

खुशी हमसे ….

यूँ ना बैठ मुसाफिर थक-हार कर

एक दिन जिंदगी संवर जायेगी ….

©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा

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