लेखक की कलम से
ठिठुरन भरी सर्दी मुबारक
✍सुप्रभात
ज्वर के ज्वाला से तप रही हैं अस्थियां
चाहतों के समंदर से बना है वीथियां
कौन जानता कौन समझता जिंदगी को
रह गईं धरी की धरी सारी की सारी पोथियां
ज्वर के ज्वाला से तप रही हैं अस्थियां!
©लता प्रासर, पटना, बिहार