लेखक की कलम से

मतीरों ….

 

भरेड़ी सब्जी मंडी रे बीचो-बीच,

मतीरें ने मस्करी सुझण लागी,

ज्यों ही सब्जी वाले ने पाणी रे छींटे दिए।

सगली सब्जी री अचेतना भागण लागी।

मतीरों बोल्यो काकड़िया से,

थारो भी मौसम आया करें है काई,

काकड़िया मुस्कुराती हुई बोली,

पीजा, बर्गर खा वाला टाबरिया भी माह्ने,

बड़े चाव से खाया करें हैं।

ग्वारफली भी मनडा़ माई फूलण लागी,

तुरई, बैंगन, लौकी, टिंडा ने अपणें बढ़ते

भाव दिखाणें खातिर तराजू में तुलण लागी,

इतरा में गोभी भी चुटकियां लेवण भागी,

मतीरों बोल्यो थोरों मौसम अबार कोणी आयो,

तू पहला ही ठेला पे कईयां आगी।

पाछे से सिंघाड़ा बोल्यो अरे बे मौसम,

खा वाला की बढ़ती मांग देख किसान पहल्यां ही इन्हें सब्जी मंडी में ले आयो,

मतीरों कुछ और मसखरी करतो,

उससे पहल्यां ही भिंडी उछल पड़ी और बोली

रुक जाओ मतीरें भाया,

थाने याद कोणी के थाकी वजह से ही तो,

मतीरें री राड़ हो जाया करें हैं।

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                 

 

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