लेखक की कलम से

यादों में बसी मां …

दीवार पर टंगी घड़ी

मां की यादों को

ताजा करती है

रातों में उठ उठ

बेचैनी से इधर से उधर भटकती

मैं बहुत छोटा

कहां जान पाया

मां की वह बेचैनी

 

२__   एक उदास शाम

स्कूल से वापस आया —

देखकर लेटी है मां जमीन पर !

हुआ हैरान मैं  !!

सब की गुहार पर इधर से उधर दौड़ने वाली मां

क्यों सोई है आज !

सफेद चादर ओढ़???

 

मैंने दादी का पल्लू पकड़ पूछा

कहां ले जा रहे हैं मेरी मां को ??

 

दादी बोली भगवान को प्यारी हुई तेरी मां

अब ना उठाएंगे

दुआ में यह हाथ

बिट्टू आ _

 

©मीरा हिंगोरानी, नई दिल्ली                                           

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