प्रणेता साहित्य संस्थान की काव्य गोष्ठी 13 नवंबर को दिल्ली में संपन्न ….
डॉ भावना शुक्ल । प्रणेता साहित्य संस्थान के संस्थापक और महासचिव तथा साहित्य जगत के जाने माने ख्यातिप्राप्त कहानीकार एसजीएस सिसोदिया के सान्निध्य और प्रणेता की अध्यक्ष शकुंतला मित्तल के संयोजन में 13 नवंबर को प्रणेता साहित्य संस्थान दिल्ली द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी गूगल के आभासी पटल पर सफलता पूर्वक संपन्न हुई। यह काव्य गोष्ठी ख्याति प्राप्त विशिष्ट साहित्यकार, जोधपुर, राजस्थान से नीना छिब्बर की अध्यक्षता में संपन्न हुई। मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ कथा लेखिका जबलपुर, मध्य प्रदेश से निर्मला तिवारी उपस्थित रहीं तथा अति विशिष्ट अतिथि की भूमिका का निर्वाह वरिष्ठ लेखिका गुरुग्राम, हरियाणा से लाडो कटारिया ने और विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ लेखिका शिक्षाविद नोएडा से नोरिन शर्मा ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से मंच की शोभा बढ़ा कर किया।
गोष्ठी का आरंभ श्रीमती चंचल पाहुजा के द्वारा माँ शारदे के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुआ इसी के साथ चंचल की मधुर सरस्वती वंदना ने मंच को भक्ति भाव से तृप्त कर दिया। प्रणेता के संस्थापक एवं वरिष्ठ साहित्यकार एस एस सिसोदिया ने प्रणेता की यात्रा ,उसकी सफलता की ओर बढ़ते विभिन्न आयामों से सबको परिचित करवाते हुए श्रीमती एवं खुशहाल सिंह स्मृति सम्मान समारोह 2021′ की प्रविष्टि के लिए काव्य पुस्तकों का आह्वान किया।
तत्पश्चात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ भावना शुक्ल ने अतिथियों का स्वागत अभिनंदन किया। इस गोष्ठी में साहित्यकारों ने विविध रंगी काव्य पाठ की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ सुनीता गहलोत ने
“मैं प्रकृति हूँ
कभी मैं सीता बनी,
मुझे राम ने अपनाया
रजक के कथन भर से ,
मुझे वन में छुडवाया..।
परिणीता सिन्हा ने
तेजपत्ता यूँ तो महज एक पत्ता ही है ।
लेकिन इसके गुणों की रसोई घर में बडी महत्ता है ।
सीमा मदान द्वारा…
बचपन में बीता, याद आता है हर पल।
काश फिर से वैसा ही हो, आने वाला कल।।
डॉ कृष्णा आर्या नारनौल, हरियाणा के द्वारा
मुझे मत मारो तुम मेरी माँ जन्म लेने से पहले ही
करो मत मुझ पर अत्याचार जन्म लेने से पहले से।
डॉ शारदा मिश्रा ने
देश का भविष्य और शक्ति है बच्चे,
भेदभाव से दूर प्रेम का रूप हैं सच्चे बच्चे
अलका जैन आनंदी मुंबई
हँसे पेट पर हाथ रख,उचित नहीं व्यवहार।
देखे सबही हँस पड़े, मिलती खुशी अपार।।
स्वीटी सिंघल ‘सखी’ के द्वारा
दूर गगन में उड़ती जाती
मेघों को छूकर में आती।
मन हो जाता मस्त मलंग
काश मैं होती एक पतंग!
डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव के द्वारा
अनुभवों की पोटली
पीठ पर लादकर
कोई लेखक नहीं बनता।
चंचल पाहुजा दिल्ली के द्वारा..
तितली रानी, तितली रानी,
पाए रंग कहांँ से धानी।
निवेदिता सिन्हा भागलपुर के द्वारा
ईश्वर की हर रचना सुन्दर
चाहे मानव हो या प्रकृति
उसने अपनी हर रचना में
अपनी अनुपम सुन्दर छवि डाली।
सरिता गुप्ता के द्वारा
गर हम चाहें नित बढ़े, सब अपनों में प्यार।
बचपन से ही दीजिए, बच्चों को संस्कार।
की काव्यात्मक रस की बौछार के बाद विशिष्ट अतिथि नोरिन शर्मा ने अनेक प्रतीकों के माध्यम से अपनी रचना की प्रस्तुति दी।
“औरतें चीख रहे थे बच्चों का रो-रोकर हाल बेहाल चारों ओर खून से सनी जमीन और हा हा कर।”
अति विशिष्ट अतिथि लाडो कटारिया ने
हम बच्चे हिन्दुस्तान के हैं
हम नोनिहाल वतन के हैं
पढ- लिखकर मेहनत कर लेंगें
हम कल सभ्य नागरिक बन लेंगे
हम इसके लिए लेंगें
हम इसके लिए मर जाएंगे।
मुख्य अतिथि निर्मला तिवारी ने अपने उद्बोधन के साथ ही साथ बहुत सुंदर मार्मिक रचना पढ़ी।अध्यक्ष नीना छिब्बर ने अपने उकृष्ट विचारों के साथ साथ
बालदिवस की पूर्वसंध्या पर कविता.. पढ़ी। दादी कहती थी .
(सूर्य सब के दादा हैं सुबह उठकर करो प्रणाम पाओ उर्जा का वरदान ।।
चंदा भी है मामा सबका अठखेलियाँ करता बच्चों से बाँटता मीठी मुस्कान।।।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ भावना शुक्ल के मोहक संचालन ने गोष्ठी को चिर-स्मरणीय बना दिया।
शकुंतला मित्तल ने अतिथि वृंद और सहभागी साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापन किया।