लेखक की कलम से
मेरी अक्षर …
ये अक्षर
उड़ते हुए अक्षर
कुछ कुछ बोलती हुए जा रहे
कभी हंसते तो
कभी रोते हुए जा रहे
मैं उन्हें देख रही
महसूस कर रही
पकड़कर कॉपी में
कलम के सहारे
आकृति देने का
प्रयास कर रही
कभी ये अक्षर
भाव के बोझ से
दबते दम तोड़ते से
बोझिल महसूस हो रहे
कभी ये चिंतित हो लाल
दृश्य गत हो रहे
कभी ये
आविष्कारक की भांति
नई तकनीक के द्वारा
मन के विचारलोक से
कुछ अजूबा, अद्भुत
निकालने के क्रम में
साधक से प्रतीत
हो रहे
मेरे अक्षर उड़ते हुए अक्षर
अनछुए भाव लोग से
परिचित करा रहे
मुझे सिर्फ मुझे
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता