लेखक की कलम से

चल उठ …

 

चल उठ और ख़ुद तलाश ख़ुद की

अपने जीवन की राह ख़ुद कर तय

नदियों का रुख मोड़ता चल

जिधर भी तू चले राह मिलती जाए

चलता चल अकेला ही जीवन डगर में

राह अपनी ख़ुद की ख़ुद ही कर तलाश।

 

देख सितारों में दुनियां अपनी चमचमाती सी

बना अपना एक आसमा और एक धरती न्यारी सी

इस धरती को छोड़ चल ख़ुद कर तलाश नई सी

अपनी ही ख़ुद की एक धरती, आसमां फैला सा

और बढ़ता चला जीवन पथ पर आगे ही आगे

एक छाप छोड़ अपनी स्वंय की न्यारी सी।

 

मुश्किल कहाँ नहीं मिलती पर तु उठ चल

मत घबरा उनसे कभी उठ चल

फहरा जीत की पताका सबसे ऊंची उठ चल

और दिखा अपनी मेहनत से सबको राह उठ चल

बता सभी को जहाँ चाह होती राह वहीं मिलती

बेकार तू अपने को मत मान राह नई बना चल उठ।

 

चल उठ खिलखिला और बढ़ आगे पल पल

जीवन की कठिन राह को आसान करते हुए

दुखों को धता बता उठ तू उठ बढ़ पल पल

अपना नसीब खुद गढ़ता चल उठ पल पल

बढ़ता चल स्वयं ही नित नित तू चल उठ चल

हिम्मत भी तेरा ही साथ देगी चल उठ चल।

 

सारी दुनिया देखेगी ताकत तेरी खुद्दारी की

रोक ना पाएगा कोई कदमों को, तेरे अब

क्योंकि हिम्मत हमेशा आगे बढ़ाती हैं पल पल

तुम पाकर हिम्मत खड़े रहो अपने हर सपने लिये

करने उनको पूरा नहीं देखना तुम पीछे मुड़कर

आगे बढ तू उड़कर, चलकर पल पल

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद                                            

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