एक रंग …
आओ सखा (कृष्ण), सखी संग होरी खेलो,
अहंकार तज कर,
मस्त मलंग होकर आओ।
ताल पे थिरके, सुर को साधे,
चलो फाग मनायें।।
रंगों को विभूति बनाकर,
ललाट में उज्जवल, उत्थान लगायें।
मार्ग को प्रशस्त कर, शुभ अभियान की ओर जाएं,
मैं से हम हो जायें।
पर श्याम, मैं तो भली-भाति तुमसे परिचित हूं,
तुम्हारे हर ढंग से नये-पुराने हर रंग से,
न चढ़े जिस पर कोई रंग,
उस काले अलौकिक रंग से,
लगाओ रंग ऐसे की, मुग्ध हो जाऊॅं।।
प्रभु की माया है, सब रंग अनुकूल, सब रहें व्याकुल,
तुम संग मिलने को, तुम संग फाग में खिलने को ….
मैं गोर-वर्णा राधा, बताओ सखा ?
तुमने मुझे कैसे साधा ?
मुझ पर हर रंग निखरे,
फीके रंग भी चटक गहरे होकर बिखरे,
टाओ अगोचर, आओ निराकारी,
नव-नूतन कर दो कृष्ण मुरारी।
संघर्ष से थका मन, उत्कर्ष से रंग जाये,
श्याम, तुम श्वेत हो जाओ,
टनुगामिनी, महागामिनी राधे काली जो जाये,
शून्य हो जाये।।
श्याम पुकारे सखी! राधे-राधे ……
और राधे श्याम के हृदय निकेतन में, छिपकर,
मंद-मंद मुस्कायें।
श्याम कहे, ‘‘सुन री राधे, सब रंग एक,
सब है नेक।
जरा खुले नैन से तो तो देख‘‘।।
©दोलन राय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र