चाह से चाय तक …
अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस के उपलक्ष्य में
आखों को जगाने और नींद को भगाने,
इक ऊबाल बेड टी वाली चाय तो बनती है।
सुबह की भोर जब करें उषा का अभिनंदन,
इक महकती चाय की प्याली तो बनती है।
भाप के साथ जब सिकते हैं गरमा गरम पराठे,
इक मां के हाथों की चाय नाश्ते के साथ जमती है।
दादा दादी या किसी की रुठे को मनाने के लिये,
आउटिंग कर कुल्हाड़ वाली सौंधी चाय साथ जमती है।
आफिस या घर में जब ज्यादा हो काम,
इक चाय की चुस्की से ही थकन थमती है।
लांग ड्राइ हो, रेल यात्रा या फिर तीर्थ यात्रा,
इक चाय की प्याली नींद को विराम कर थमती है।
सावन की रिमझिम फुहारों में प्यार के मौसम में,
इक कड़क चाय की प्याली प्रेमियों को रमती है।
औपचारिक, शासकीय या फिर अनौपचारिक समारोह हो,
सर्वप्रथम चाय के स्वागत से ही सभा रमती है।
कहीं काली, कही गुड़, कही इलायची, दालचीनी वाली,
घर घर बन चाय की मिठास रिश्तों में मिलती है।
रामबाण औषधि वरदान या लत कहे,
जिस चाय की चुस्की से आंखें सबकी खुलती है।
©अंशिता दुबे, लंदन